16-10-16 ओम् शान्ति       “अव्यक्त बापदादा”      मधुबन

''ओम् शान्ति शब्द के अर्थ स्वरूप में टिककर मन की डांस बढ़ाओ, मन के मौन की आदत डालो तो मुख के आवाज से दूर होते जायेंगे और शान्ति की किरणों से सेवा स्वत: बढ़ती जायेगी''

ओम् शान्ति। यह महावाक्य कितने सभी के प्यारे हैं। भले कुछ भी हो लेकिन ओम् शान्ति शब्द रोने का वायुमण्डल हो, तो भी ओम् शान्ति शब्द हमारे को शान्ति की याद दिलाता है। ओम् शान्ति कहने से ही कैसा भी दृश्य सामने आवे लेकिन ओम् शान्ति का अर्थ अपना ही रूप दिखाता है। ओम् शान्ति कहना स्वत: ही अन्दर शान्ति की लहर फैलाता है। सबके दिल में ओम् शान्ति अपना ही अर्थ फैलाता है। जैसे बाबा शब्द अपना अर्थ फैलाता है, ऐसे ओम् शान्ति के शब्द से अपना ही अर्थ दिल में फैलता है। दिल में फैलाता तो है लेकिन फैलाते हुए उस अर्थ स्वरूप में स्थित हो जाते, सिर्फ कहते नहीं हैं लेकिन चारों ओर देखो तो ओम् शान्ति के अर्थ स्वरूप में मैजारिटी टिके हुए हैं। मैजारिटी के रूप चमक रहे हैं। एक दो को देख, एक दो के संग का रंग चेहरे में चमकता रहता है इसलिए बापदादा भी ओम् शान्ति ही याद दिलाता है। हर एक के मुख में अन्दर ओम् शान्ति का अर्थ दिखाई दे रहा है। हर एक के दिल अन्दर ओम् शान्ति का अर्थ स्वरूप दिखाई दे रहा है। आप सबके दिल अन्दर अर्थ आ गया! हर एक ओम् शान्ति के अर्थ स्वरूप में दिखाई दे रहा है, कोई बोल रहा है, देख रहा है ओम् शान्ति।

अभी भी सभी इस घड़ी ओम् शान्ति के अर्थ स्वरूप में बहुत अर्थ में मगन हैं। तो बाप भी कहते हैं इसी ओम् शान्ति अर्थ में टिकने से, सबकी शक्लें मैजारिटी ओम् शान्ति के अर्थ में मगन हैं। आगे पीछे हाथ क्या उठायें लेकिन मैजारिटी सब इस अर्थ स्वरूप में समाये हुए हैं। सबके मुख से ओम् शान्ति ही निकल रहा है। सभी के दिल में ओम् शान्ति शब्द समाया हुआ है। सभी के मन में यह अर्थ इमर्ज है। सभी उस ओम् शान्ति के अर्थ में मन की डांस कर रहे हैं। भले पांव की डांस नहीं कर रहे हैं लेकिन मन की डांस मैजारिटी कर रहे हैं और यह मन की डांस कितनी प्यारी है। किसी को परेशान नहीं करती। हर एक अपने मन की शान्ति होने के कारण बहुत बाहर से भी शान्त, मन से भी शान्त। ऐसे डबल ओम् शान्ति, बाहर मुख से भी ओम् शान्ति और मन से भी ओम् शान्ति। यह भी एक डांस है। यह मन की डांस है। शान्ति में बैठे कितनी मीठी डांस कर रहे हैं। लेकिन मन की डांस होने के कारण बाहर का आवाज नहीं है। हर एक अपने मन की डांस में बिजी है इसलिए मन का आवाज है लेकिन मुख का आवाज नहीं है। इतने लोग होते भी नजदीक तक कोई आवे तब सुन सकता है क्योंकि मन की डांस मन ही जाने। और इस मन की डांस में इतने बिजी हैं जो इस मन की डांस में बाहर कितने भी बैठे हैं लेकिन मन शान्त है। मन की मस्ती में सब मगन हैं इसलिए यह मन की डांस में बाहर का आवाज नहीं करते लेकिन यह मन की डांस मन में इतने रंग दिखाती जो बहुत प्यारे हैं। यह मन का डांस जब भी होता है तो बाहर की आवाज कुछ नहीं। हर एक इतने बैठे हैं लेकिन आवाज नहीं है क्योंकि मन की डांस में सब बिजी हैं। यह डांस अच्छी लगती है ना। बाहर की डांस तो बहुत ही देखी है लेकिन यह मन की डांस बहुत रमणीक है। इस डांस को ज्यादा बढ़ाओ। मन की डांस जानते हो ना! जानते हो? जो जानते हैं वह हाथ उठाओ। अच्छा, सभी जानते हैं। बहुत अच्छा हाथ भी उठा रहे हैं। तो अभी इस डांस में नम्बर आगे जाओ। यह मन की डांस अच्छी लगती है वा मुख की डांस अच्छी लगती है? अभी आदत डालो मन के डांस की। इसमें ही बिजी रहने से, मन की डांस करने के टाइम यहाँ हाल में कितनी शान्ति हो जाती है। लेकिन यह डांस अभी ज्यादा आवश्यक है क्योंकि दिनप्रतिदिन बाहर का हंगामा तो बढ़ता है, बढ़ना ही है। ऐसे टाइम पर बाहर की डांस या बाहर की आवाज में आना वह भी अच्छा है लेकिन मन के डांस की प्रैक्टिस बहुत चाहिए। इसकी अन्दर ही अन्दर प्रैक्टिस होनी चाहिए। सारे दिन में इसका टाइम पहले निकालो। हर एक पूरे दिन में दोनों ही डांस का टाइम निकालो और प्रैक्टिस करो। जितना यह डांस करते रहेंगे तो इस डांस से, मन की डांस का प्रभाव, मुख की डांस में भी पड़ता रहता है। तो अभी मन का डांस बढ़ाओ। फिर बहुत रूचि बढ़ती जायेगी। अभी बाप ने देखा तो कईयों का मन की डांस में इन्ट्रेस्ट बढ़ता जाता है और चारों ओर सच्ची शान्ति की अनुभूति हो रही है। कईयों का अनुभव इसमें बहुत अच्छा बढ़ता जा रहा है। यह अभ्यास बढ़ना बहुत फायदे वाला है। जो बाहर मौन का प्रोग्राम बनाते हो तो उसमें भी मन की शान्ति बढ़ती है और मन की शान्ति बढ़ने से आटोमेटिकली मुख का बोल भी कम होने लगा है। तो हर एक को अभी इस समय क्या अटेन्शन देना है! मन के मौन पर। मन का मौन, मन का मौन आप जानते हो! कि इतना नहीं जानते हो? शौक रखो इस पर, मन का मौन बढ़ता जाए। मन का मौन बढ़ने से तन का मौन स्वत: ही बढ़ता जाता है। इसमें आप सभी अपने अन्दर मन का मौन बढ़ाने का पुरूषार्थ प्यार से बढ़ाते चलो। जितना इस तरफ कोशिश करेंगे, रूचि बढ़ेगी तो स्वत: ही मन के मौन होने से आवाज से दूर होते जायेंगे और अन्दर शान्ति की किरणें बढ़ती जायेंगी। तो अभी एक सप्ताह विशेष मन की शान्ति का यह एक सप्ताह मनाओ। मुख की शान्ति घटाओ, मन की शान्ति बढ़ाओ। तो यह ट्रायल करो मन की शान्ति से सब प्रकार की शान्ति बढ़ती जायेगी। अभी एक मास मन की शक्ति को बढ़ाना है। मन की शान्ति बढ़ने से आटोमेटिकली मुख की शक्ति बढ़ती रहेगी। यह प्रैक्टिस सभी को अच्छी लगती है! हाथ उठाओ। अच्छा, हाथ तो सभी ने उठाया है मैजारिटी।

अभी यह मन की शक्ति क्या है! और उसको कैसे बढ़ाना है, यह भी अन्दर ही अन्दर अभ्यास करते रहो, और यह मन की शान्ति का लेसन बढ़ाते रहो। जितनी मन की शान्ति बढ़ेगी उतनी ही मन की शान्ति का प्रभाव मुख की शान्ति पर भी पड़ेगा और जितनी मन की शान्ति बढ़ेगी उतनी मुख की शक्ति बाहर की वह कम होगी। आजकल बीच में बहुत अच्छी यह रेस चली थी, मन की शान्ति सबकी बढ़ गई थी, चाहे मन्सा सोचने की शक्ति, चाहे मुख द्वारा चाहे सूक्ष्म शक्ति बढ़ने के अभ्यास द्वारा जितना बढ़ायेंगे उतना ही शक्ति बढ़ करके मुख की शक्ति कम होगी तो काफी बोल में जो नीचे ऊपर होता है, या बोल के लिए पुरूषार्थ करते हैं वह देखा गया कि कम होता है। तो वह करते चलें, यही बापदादा का कहना है।

सेवा का टर्न, पंजाब और राजस्थान का है, टोटल 22000 आये हैं:- वैसे टोटली अभी जो सबजेक्ट चली है, सेवा और याद, यह दो सबजेक्ट हैं। अभी सेवा को भी बढ़ाना ही है। आप क्या समझते हो, सेवा को बढ़ायें? हाथ उठाओ। सेवा भी जरूरी है। अगर सेवा नहीं करेंगे तो यहाँ वहाँ टाइम ऐसे ही चला जायेगा क्योंकि टाइम तो पास करना ही है और अच्छा टाइम पास करना है, जो आया सो किया, नहीं। कायदे मुजीब जैसे प्रोग्राम मिले उसी अनुसार रिजल्ट निकलनी चाहिए।

रमेश भाईकी तबियत ढीली है उन्हें हॉस्पिटल लेकर जा रहे हैं, वह बापदादा से मिल रहे हैं, रमेश भाई ने बापदादा को नई पुस्तकें भेंट की:- ओम् शान्ति। सार्विस का तो चल ही रहा है और सार्विस भी जरूरी है। सार्विस के बिना आप भी फ्री हो जायेंगे ना तो आपको भी और और संकल्प चलेंगे कि कुछ होना चाहिए लेकिन पहले अभी जो सार्विस के प्लैन के बारे में निकला है, तो बापदादा का यही विचार है कि पहले जो सेवा रही हुई है उनको पूरा करो। ऐसे शुरू करते हैं फिर कुछ समय के बाद वह जोश जो है सार्विस करने का वह कम हो जाता है।

अच्छा है, रमेश आपका विचार तो बढ़िया है लेकिन इसमें करने के समय कुछ विशेष ध्यान भी रखना पड़ेगा, वह थोड़ा आपस में बैठकर इसके बारे में चर्चा करो, तो वह कैसे चलायें और कैसे उसकी वृद्धि हो। ज्यादा टूमच में भी नहीं जाना है और न एकदम कम कर देना है। बीच में चाहिए दोनों तरफ इसलिए पहले एक छोटी मीटिंग करो, उसमें आइडिया बनाओ क्या-क्या करना है, क्या नहीं करना है, वह हर एक अपना विचार देवे उस पर पहले प्लैन बनाओ क्योंकि सार्विस सभी की बढ़ायें या नहीं, यह पता पड़ जायेगा।

डबल विदेशी 75 देशों से 900 आये हैं:- (बापदादा को सार्विस का प्लैन भेजा है, बापदादा उस पर अपने महावाक्य उच्चारण कर रहे हैं) इनका सार्विस का प्लैन बढ़िया है। जितना सार्विस में आगे बढ़ते हैं उतना ही फिर और सबजेक्ट में भी पीछे नहीं रहें। उसका फिर मिलकर प्लैन बनायेंगे तभी फाइनल करेंगे। पहले जिन्होंने सार्विस का प्लैन बनाया है उसको पहले सुनो और उसे फाइनल कर सको तो करो, नहीं तो एडीशन करनी हो तो एडीशन की भी रूपरेखा बताओ फिर उसका सोचकर सार्विस का भी बनाओ और योग का भी बनाओ। यह दोनों टापिक जरूरी है उसको बनाकर फिर यह प्लैन जो है उसको फाइनल करो तो इसमें क्या करना है, क्या नहीं करना है। जो समझते हो कि यह सेवा जरूरी है वह प्लैन बनाके पहले पास कराओ फिर आउट करना। (दादियां बापदादा से मिल रही हैं)

बाबा आपका तो पहले सार्विस भी आपकी, क्योंकि बाबा को शौक है सेवा का। सेवा की तरफ ही अटेन्शन जाता है इसलिए सेवा भी करनी है और साथ में यह जो सेवा है, उसको बढ़ाना भी है। एक तरफ बाबा कहते हैं बढ़ाओ, दूसरे तरफ कहते हैं इतनी सेवा नहीं करो जो सम्भाल नहीं सको। यह भी पहले सिस्टम ठीक करो। सिस्टम ठीक हो जायेगी तो फिर आटोमेटिकली सब डिपार्टमेंट में वह ठीक होगी। लेकिन ध्यान जाए तो एक-एक डिपार्टमेंट को जैसे आप निकालेंगे वैसे ही करना है या कुछ एड करना है या कट करना है। वह भी पहले फाइनल करना है।

विदेश की बड़ी बहिनों से:- सभी आये हैं। तो आपस में बैठे हैं! आपने अपना प्लैन बना दिया है? (अभी बनायेंगे) तो पहले बनाओ फिर बापदादा देखेंगे कि क्या-क्या हो सकता है और फिर इस सेवा को, जैसे इतना टाइम आपने दिया ना, तो इतना टाइम सभी को निकालना ही पड़ेगा क्योंकि वह रिपीट तो करेंगे ना। उसमें भी बहुत करके एम रखो सार्विस जो मुख्य है वह बता दो फिर डबल बारी नहीं बैठें। जो सार्विसएबुल हैं जो सार्विस के लिए सोचते हैं, आये भी सार्विस के प्लैन के लिए हैं। तो जितना सार्विस के ऊपर अटेन्शन देना है उतना सार्विस का फायदा उठा सकें। आपस में बैठकर कोई नवीनता निकालो। यह सब जो चलता है उसको थोड़ा ठीक करो और कोई नवीनता निकालो।

जर्मनी में रिट्रीट सेन्टर मिला है, सुदेश बहन बाबा को उसका नक्शा दिखा रही हैं:- भले सभी देखो, फिर फाइनल करो।

(न्युयार्क की मोहिनी बहन ने सभी की याद बापदादा को दी, मोहिनी बहन की प्लैटिनम जुबिली है, बापदादा उन्हें हार पहना रहे हैं।)

बैंगलोर की सरला दादी बापदादा को गुलदस्ता दे रही हैं:- तबियत ठीक है। अच्छा है।